Wednesday, 5 October 2016

अष्टावक्र गीता - भाव पद्यानुवाद (पेंतीसवीं कड़ी)

                  सत्रहवां अध्याय (१७.१-१७.५)                                                                                (With English connotation)
अष्टावक्र कहते हैं :
Ashtavakra says :

ज्ञान और योग का फल है, उसको निश्चय ही प्राप्त है होता|
जो संतुष्ट स्वच्छ इन्द्रिय है, आनंदित वह एकांत में होता||(१७.१)

One who is contented, has purified senses and
loves his solitude, definitely attains the fruits of
both knowledge and yoga.(17.1)

जो ज्ञानी है तत्व का ज्ञाता, उसको दुःख जग में कब होता|
ब्रह्म व्याप्त सम्पूर्ण विश्व है, उसको इसका आभास है होता||(१७.२)

The knower of Truth is never afflicted with pain
in the world, because he is aware that the whole
universe is pervaded by the Supreme Self.(17.2)

जो आत्मा में रमण है करता, वह विषयों से न हर्षित होता|
सल्लाकी पत्तों का प्रेमी, हाथी को प्रिय कब नीम है होता||(१७.३)

The person who has found pleasure in his inner
self does not get happiness in sensual matters,
like the elephant, who has acquired the taste
for Sallaki leaves, does not like Neem Leaves.(17.3)

न है आसक्ति प्राप्त भोग में, अप्राप्त भोग की इच्छा न करता| 
इन इच्छाओं से रहित है ज्ञानी, जग में सदा है दुर्लभ रहता||(१७.४)

It is rare to find a such a knowledgable person
who is not attached to the things which he
possesses and does not hanker after things
which he does not have.(17.4)

मोक्ष चाहते हैं कुछ जग में, कुछ भोगों में आसक्त हैं रहते|  
मुक्त हों दोनों इच्छाओं से, ऐसे जन जग में दुर्लभ हैं रहते||(१७.५)

Some persons in the world want liberation and
some are attached to pleasures. However, it is
rare to find a person who is free from both
these desires.(17.5)

                                             ...क्रमशः

....© कैलाश शर्मा