द्वितीय अध्याय (२.0१-२.0५)
(with English summary)
(with English summary)
राजा जनक ने कहा :
King Janak says :
मैं निर्दोष, शांत, परे प्रकृति से, कैसे इससे
अनभिज्ञ रहा|
मैं हूँ ज्ञान स्वरुप भूल कर, क्यों मोह जाल संतप्त रहा||(२.१)
I am spotless, calm and beyond nature. I am knowledge
personified. I am surprised why I remained deluded
so long. (2.1)
यथा प्रकाशित करता यह तन, वैसे विश्व प्रकाशित
करता|
अतः समस्त विश्व हूँ मैं ही, अथवा मेरा
अस्तित्व न रहता||(२.२)
As I illuminate this body, similarly I illuminate this
entire universe. Therfore, either this entire universe
is mine, or is nothing. (2.2)
यदि शरीर के साथ है अपने, मुझे विश्व छोड़ना हो संभव|
शायद कुछ कौशल के बल पर ही है प्रभु देखना संभव||(२.३)
Now by abandoning this body along with the
universe, it is possible to see the Supreme God
with some skill.(2.3)
पानी अलग नहीं होता है, लहर, फेन बुलबुलों से
जैसे|
आत्मा से निकले इस जग से, आत्मा नहीं भिन्न है
वैसे||(२.४)
As waves, foam and bubbles are not separate
from water, similarly this world which has
emanated from Soul is not different from Soul.(2.4)
यदि विचार कर के यह देखें, वस्त्र है केवल धागा
लगता|
वैसे ही सम्पूर्ण विश्व यह, मात्र है केवल
आत्मा लगता||(२.५)
We realise on analysis that the cloth is nothing
but thread, similarly this entire world is also
nothing but the Self. (2.5)
...क्रमशः
...©कैलाश शर्मा