प्रथम अध्याय (१.१६-१.२०)
(with English summary)
(with English summary)
सर्व विश्वव्यापी हो तुम तो, जगत पिरोया हुआ है तुम में|
ज्ञानस्वरूप शुद्ध हो तुम तो, क्षुद्र विचार न लाओ मन में||(१.१६)
You have pervaded this entire world and in fact this world is pervaded
in
you like string. You are personification of pure knowledge.
Therefore, you should not bring small things to your mind.(1.16)
निर्विकार, निरपेक्ष, शांत हो, तुम अगाध बुद्धि के सागर|
कर्म रहित होकर के अब तुम, मन चैतन्य रूप स्थिर कर||(१.१७)
You are changeless, desireless, calm and store of pure awareness. You are free from all actions. Therefore, you should be nothing but
consciousness.(1.17)
जो शारीरिक असत जानकर, निराकार चिर स्थिर मानो|
पुनर्जन्म से मुक्त है होगे, जब यह तत्व है तुम पहचानो||(१.१८)
Whatever bears a form or body is unreal and only formless or unmanifest
is permanent. If you realise this then you will be free from rebirth.(1.18)
रूप जो दर्पण में प्रतिबिंबित, वह अन्दर बाहर भी होता|
वैसे शरीर के अन्दर बाहर, परम आत्मा भी है होता||(१.१९)
The reflected image in the mirror exists both within it and outside. Similarly, the
Supreme Self exists both within and outside the body. (1.19)
जैसे है आकाश एक ही, घट के भीतर बाहर रहता|
वैसे सतत व शाश्वत ईश्वर, सर्व प्राणियों में है रहता||(१.२०)
Just as all pervading space exists both within and outside
the jar, the
everlasting and continuous Supreme Consciousness exists both
within
and outside of every one.(1.20)
(प्रथम अध्याय समाप्त)
....क्रमशः
.......©कैलाश शर्मा
वाह बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteतुम हो ठाकुर में हूँ सेवक
ReplyDeleteकहूँ तुम से अब कौन व्यथा
उत्तम
रवीन्द्रनाथ ठाकुर का पत्र 'जनगण मन
ReplyDeleteदिनांक 17/08/2015 को आप की इस रचना का लिंक होगा...
ReplyDeleteचर्चा मंच[कुलदीप ठाकुर द्वारा प्रस्तुत चर्चा] पर...
आप भी आयेगा....
धन्यवाद...
आभार...
Deleteमन आत्मा को स्फूर्त करती अनुपम प्रस्तुति ! बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteअष्टावक्र के लिए कहा गया था - " न धर्मवृद्धेषु वयः समीक्ष्यते ।" अर्थात् जो ज्ञान - वृद्ध हैं उनकी उम्र नहीं पूछी जाती ।
ReplyDeleteसुन्दर - सरस - अनुवाद ।
बहुत अनुपम प्रस्तुति सर ।
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ख़बरों के टुकड़े - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteआभार...
Deleteईशवरकण कण -कण में मौजूद है । दिल से मानने की बस बात है । बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteजैसे है आकाश एक ही, घट के भीतर बाहर रहता|
ReplyDeleteवैसे सतत व शाश्वत ईश्वर, सर्व प्राणियों में है रहता||
बहुत ही सार्थक और सुन्दर ! सुन्दर और ज्ञानवर्धक श्रंखला प्रस्तुत कर रहे हैं आप आदरणीय शर्मा जी !!
अद्भुत ज्ञान से परिपूर्ण ..
ReplyDeleteउत्तम. आभार.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ... इश्वर का वास हर प्राणी मात्र में है ...
ReplyDeleteRespected Shri Kailashji, Your blog contains very useful things. There are a lot of things to read and learn here. It is really a positive use of retired life.
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