Monday, 10 August 2015

अष्टावक्र गीता - भाव पद्यानुवाद (तीसरी कड़ी)

                          प्रथम अध्याय (१.१२-१.१६)
                        (with English summary)

आत्मा पूर्ण, मुक्त, साक्षी है, निस्पृह, चेतन और असंग|
सांसारिक लगती है भ्रम वश, व्यापक, निर्मल और निसंग||(.१२)
(The Soul is perfect, free, witness, actionless, and all pervading. It is desireless, peaceful and is not attached to anything. It is only only our illusion that we see Soul worldly.)

चेतन, नित्य, अद्वैत है आत्मा, उसमें अपना चित्त लगा कर|
अहंकार अपने को तज कर, बाह्य जगत समझो तुम अन्दर||(.१३)
(Meditate on your actionless, timeless inner self, which is free from dualism. You should be free from the illusion of ‘I’ and think the external world as part of you.)

करते हो अभिमान देह का, इसको तुम सर्वस्व है मानो|
ज्ञान खड्ग से बंध काट कर, अपना आत्म रूप तुम जानो||(.१४)
(You are proud of and have bound your identity with your body since long. You cut this snare with the help of the sword of knowledge that you are pure awareness and be happy.)

स्वयं प्रकाशित, दोषमुक्त तुम, कर्ममुक्त और हो निस्पृह|
ध्यान के द्वारा ज्ञान प्राप्ति का, यह तेरा प्रयास है बंधन||(.१५)
(You are in reality already self-illuminating, stainless, actionless and unattached. Your effort to calm your mind with the help of meditation is your only bondage)

सर्व विश्वव्यापी हो तुम तो, जगत पिरोया हुआ है तुम में|
ज्ञानस्वरूप शुद्ध हो तुम तो, क्षुद्र विचार न लाओ मन में||(.१६)
(You have pervaded this entire world and in fact this world is pervaded in you. You are personification of pure knowledge. Therefore, you should not bring small things to your mind.)

                                                                         ....क्रमशः

...©कैलाश शर्मा

13 comments:

  1. बहुत सुंदर प्रस्तुति ।

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  2. अष्टावक्र गीता का सुन्दर दोहा रूप, साथ ही आंग्ल भाषा में अनुवाद भी, आभार!

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  3. आदरणीय कैलाशजी आपके इस सद्प्रयास के लिये कोटिश बधाई, हमारे पौराणिक धरोहर को इसी प्रकार सहेजते रहिये
    उपासना

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  4. सुन्दर प्रयास । हमारी धरोहर सभी का मार्ग - दर्शक बनेगी । प्रणम्य - प्रस्तुति ।

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  5. अति सुन्दर।अंग्रेजी में अनुवाद करके आप नें प्रस्तुति को और खूबसूरत बना दिया।

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ! इस सुन्दर एवं सटीक अनुवाद के लिये आभार आपका कैलाश जी !

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  7. करते हो अभिमान देह का, इसको तुम सर्वस्व है मानो|
    ज्ञान खड्ग से बंध काट कर, अपना आत्म रूप तुम जानो||
    अति सुन्दर।अंग्रेजी में अनुवाद करके आप नें प्रस्तुति को और खूबसूरत बना दिया।

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  8. HAPPY INDEPENDENCE DAY
    सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
    मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...

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  9. गीता का ज्ञान निसंदेह अद्धभुत।

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  10. आत्मा को जानना ही परम ज्ञान है ... अध्बुध है इस गीता ज्ञान भी ...

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  11. अनुवाद को माध्यम में लेकर आप मानव मन की गहराइयों में उतरकर ज्ञान का वह दीपक जलाने का
    शुभारम्भ किया है जिसकी लव में साहित्य के प्रति ललक और साहित्यकारों को ललकारने का कार्य प्रारम्भ होता है | आप के इस महान शुभारम्भ को मेरा कोटि कोटि प्रणाम !

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