Saturday 26 December 2015

अष्टावक्र गीता - भाव पद्यानुवाद (बाईसवीं कड़ी)

                                    ग्यारहवां  अध्याय (११.१-११.४)
                                            (with English connotation)
अष्टावक्र कहते हैं :
Ashtavakra says :

भाव और अभाव विकार हैं, ये सब हैं स्वाभाविक होते|
निर्विकार आत्म जो जाने, वे सुख, शांति प्राप्त हैं होते||(११.१)

Being and non-being and changes are by nature
natural. By realising this and knowing the
indifferent  Self, one remains happy and in peace.(11.1)

सब सृष्टि का निर्माता ईश्वर, जो ज्ञानी यह जान है पाता| 
सब इच्छाओं से विहीन हो, वह आसक्ति रहित हो जाता||(११.२)

One who knows definitely that the God is creator
of the world and none else, remains un-attached
and free from all desires.(11.2)

सुख व दुःख प्रारब्ध से होते, जो ज्ञानी विश्वास ये करता|
संयम व संतुष्टि का स्वामी, इच्छा शोक रहित है रहता||(११.३)

Knowing that good times or bad times come due
to fate or previous actions, one who remains
contented and in control of senses, remains
free from desires and pain.(11.3)

सुख दुःख, जन्म मृत्यु का कारण, केवल है प्रारब्ध ही होता|   
इच्छा मुक्त, कर्म का साधक, न वह कर्मों में लिप्त है होता||(११.४)   

Pleasure and pain, life and death are because of
our destiny decided by previous acts. One, who
is free from desires while doing his acts effortlessly,
is not attached to these.(11.4)


                           ....क्रमशः


....©कैलाश शर्मा 


8 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (27-12-2015) को "पल में तोला पल में माशा" (चर्चा अंक-2203) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बेहतरीन अनुवाद।

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  3. सुख व दुःख प्रारब्ध से होते, जो ज्ञानी विश्वास ये करता|
    संयम व संतुष्टि का स्वामी, इच्छा शोक रहित है रहता
    अप्रतिम ! बहुत ही सुंदर ज्ञानपरक पोस्ट आदरणीय शर्मा जी

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  4. kitna aanand aaya...sarthak panktiyan..

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  5. उत्कृष्ट प्रस्तुति

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