Tuesday 15 December 2015

अष्टावक्र गीता - भाव पद्यानुवाद (इक्कीसवीं कड़ी)

                                      दशम  अध्याय (१०.५-१०.८)
                                            (with English connotation)
एक, शुद्ध, चैतन्य आत्म तुम, यह संसार असत व जड़ है|
क्या इच्छा है तुम्हें जानना, न अज्ञान का जिसमें कण है||(१०.५)

You are one pure Consciousness and this world
is illusion and inert. When there is not an iota of
ignorance in you, what is there for you to
understand.(10.5)

राज्य, पुत्र, पत्नी सुख तेरे, सब जन्मों में नष्ट हुए हैं|
तेरी भी आसक्ति उन में, लेकिन फिर भी नष्ट हुए हैं||(१०.६)

Your kingdoms, wives, sons and other
belongings had destroyed in your each
previous birth, though you were attached
to them.(10.6)


कितनी भी इच्छाएं या धन, और सभी शुभ कर्मों द्वारा|
मन को शान्ति कहाँ मिलती है, माया रूपी जग के द्वारा||(१०.७)

Any amount of desires, wealth and good deeds,
will not give peace of mind in this world of illusion.(10.7)

सभी जन्म में तुमने अपने, तन, मन, वाणी से कर्म किये हैं|
अब विरक्त हो तुम उन सब से, वांछित जीवनमुक्ति लिये है||(१०.८)

In every birth you have undertaken hard and
painful activities with your body, mind and speech.
Now be detached for your desired liberation.(10.8)

                           
                  **दशम अध्याय समाप्त**      

                                                ....क्रमशः


....©कैलाश शर्मा 

11 comments:

  1. लाजवाब अनुवाद! अति सुन्दर।

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  2. जय मां हाटेशवरी....
    आप ने लिखा...
    कुठ लोगों ने ही पढ़ा...
    हमारा प्रयास है कि इसे सभी पढ़े...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना....
    दिनांक 16/12/2015 को रचना के महत्वपूर्ण अंश के साथ....
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की जा रही है...
    इस हलचल में आप भी सादर आमंत्रित हैं...
    टिप्पणियों के माध्यम से आप के सुझावों का स्वागत है....
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    कुलदीप ठाकुर...

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  3. बहुत सुन्दर पद्यानुवाद

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  4. आदरणीय कैलाश शर्मा जी आध्यातनिक यात्रा बहुत सुन्दर

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  5. अद्भुत जीवन दर्शन ! आभार !

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  6. कितनी भी इच्छाएं या धन, और सभी शुभ कर्मों द्वारा|
    मन को शान्ति कहाँ मिलती है, माया रूपी जग के द्वारा
    बहुत सटीक पंक्तियाँ ! जीवन सरल हो सकता है अगर हम ऐसे ज्ञान का कुछ अंश भी अपना पाएं !!

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  7. भारतीय धरोहर को जीवंत रखने के लिए आप का आभार

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  8. भारतीय धरोहर को जीवंत रखने के लिए आप का आभार

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