Wednesday 18 February 2015

क्षणिकायें

मत ढूंढो रिश्तों को 
कुछ पाने की चाहत में,
चल नहीं पायेंगे दूर तक.

जब खड़े होते हैं रिश्ते
कुछ देने की चाह की नींव पर,
झेल जाते सब आंधी तूफ़ान
और खड़े रहते साथ अंत तक.

       *****
केवल योजना और वादों पर 
नहीं बनते सफलताओं के महल,
छोटी छोटी राहों पर भी 
जो थाम लेता हाथ 
होते हुए भी अकिंचन,
बन जाता है वह
सफलता के महल की 
पहली ईंट.

...कैलाश शर्मा 

20 comments:

  1. केवल योजना और वादों पर
    नहीं बनते सफलताओं के महल,
    छोटी छोटी राहों पर भी
    जो थाम लेता हाथ
    होते हुए भी अकिंचन,
    बन जाता है वह
    सफलता के महल की
    पहली ईंट.
    दोनों ही क्षणिकाएं बहुत ही सार्थक , सुन्दर और व्यवहारिक हैं श्री कैलाश शर्मा जी

    ReplyDelete
  2. यथार्थ का आईना दिखाती,सार्थक रचना!...

    ReplyDelete
  3. sundar ..dono hi ... bante bigdate rishto or netao ki wada faramoshi ko chitrit krti huyi :)

    ReplyDelete
  4. सुन्‍दर क्षणिकाएँ ....

    ReplyDelete
  5. अति सुंदर कैलाशजी

    ReplyDelete
  6. वाह ! सार्थक एवं सकारात्मक सन्देश देतीं सुन्दर क्षणिकाएं !

    ReplyDelete
  7. बहुत सुंदर और सार्थक क्षणिकाएं. ..

    ReplyDelete
  8. सत्य लिखा है. देने की चाह और छोटी-छोटी रह ही जीवन को सफल बनाती है. सुंदर क्षणिकाएं !

    ReplyDelete
  9. sankshipt me saar, ati sundar

    ReplyDelete
  10. सार्थक प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (22-02-2015) को "अधर में अटका " (चर्चा अंक-1897) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  11. कल 22/फरवरी /2015 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

    ReplyDelete
  12. सार्थक पंक्तियां। पढ़कर अच्‍छा लगा।

    ReplyDelete
  13. रिश्ते निस्वार्थ ही बन पाते हैं टिके रहते हैं अन्यथा रिश्ते नहीं रहते ...
    बहुत खूब ...

    ReplyDelete