Sunday 21 December 2014

बाज़ी तुम्हारे अस्तित्व पर

कभी कभी झूलने लगता मन
होने या न होने के बीच
तुम्हारे अस्तित्व के।
तर्क की कसौटी
उठाती कई प्रश्न चिन्ह
अस्तित्व पर ईश्वर के।
लेकिन नहीं देती साथ
आस्था किसी तर्क का
और पाती तुम्हें साथ
हर एक पल।

क्या है सत्य?
तुम्हारे न होने का तर्क
या आस्था तुम्हारे होने की?

सोचता हूँ लगा दूँ बाज़ी
अस्तित्व पर तुम्हारे होने की,
अगर जीत जाता हूँ,
पाउँगा वह सब कुछ
जो है अतुलनीय
और नहीं रहती कोई आकांक्षा
जिसको पाने के बाद।
और अगर हार जाता हूँ
नहीं होगा कोई पश्चाताप
क्यों कि नहीं खोया कुछ भी
मैंने बाज़ी हार कर।

क्या हानि है लगाने पर बाज़ी
एक बार अपनी आस्था पर
तुम्हारे अस्तित्व के होने पर?

...कैलाश शर्मा 

15 comments:

  1. ईश्वर का होना या न होना ये एक ऐसा सवाल है जो हर किसी के मन में एक बार उठता ज़रूर है लेकिन ज़्यादातर परिस्थितयों में आस्था तर्क पर हावी ही रहती है... बहुत बढ़िया प्रस्तुति

    ReplyDelete
  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (22-12-2014) को "कौन सी दस्तक" (चर्चा-1835) पर भी होगी।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
  3. विषय तो आस्‍था और विज्ञानवादियों के बीच सदैव से यही रहा है। लेकिन अापने जिस तरह से आस्‍था के मूलतत्‍व के प्रति कवितामयी वर्णन किया है, वह आस्‍थावान होने के लिए बहुत प्रेरक है। धर्मांतरण, धर्मनिरपेक्षता, साम्‍प्रदायिकता के बाद अब पीके में धर्म (विशेषकर हिन्‍दू धर्म) को पाखंड के रूप में परोसने का जो षडयंत्र चल रहा है, शायद यह कवितानुभ्‍ूाति उसी के बाद उपजी है, और जो बहुत ही प्रेरणादायी है।

    ReplyDelete
  4. विज्ञान के पास भी कहां है सारे प्रश्नों के उत्तर। आस्था से तो हमारा मन मजबूत होता है कि कोई है, सर्व शक्तिमान, जो हमें देख रहा है और देखेगा।

    ReplyDelete
  5. सचमुच लगाने जैसी है यह बाजी...

    ReplyDelete
  6. अपने पास खोने किये कुछ नहीं है ! जीते या हारे मिलेंगे बहुत कुछ ...
    : पेशावर का काण्ड

    ReplyDelete
    Replies
    1. 'अपने पास खोने के लिए' पढ़े

      Delete
  7. दिल में संशय रहने पे वो कहाँ मिलता है ... जी जान से बाजी लगाने पर शायद जरूर नज़र आये ...

    ReplyDelete
  8. ये बाजी सदैव ही फायदे की रहने वाली है ! सुन्दर आध्यात्मिक रचना श्री कैलाश शर्मा जी

    ReplyDelete
  9. आस्था तर्क से परे है और सत्य असत्य से भी. विश्वास अविश्वास के अपने अपने तर्क हैं. जिसे सही गलत नहीं कह सकते. दोनों मानसिकता के द्वन्द पर सुन्दर लेखन, बधाई.

    ReplyDelete
  10. सुंदर और सार्थक चिंतन

    ReplyDelete
  11. कस्तूरी मृग सी दौड़ है यह...... जहाँ वह है वहाँ हम खोजते नहीं और जहाँ नहीं है वहाँ सर पटकते हैं और उसके होने न होने जैसे प्रश्न उठाते हैं ...... सादर _/\_ सर जी!

    ReplyDelete