Monday 10 March 2014

जीवन और मृत्यु

क्यों करते हो
प्रेम या वितृष्णा  
जीवन और मृत्यु से,
जियो जीवन सम्पूर्णता से 
हो कर निस्पृह उपलब्धियों से,
रहो तैयार स्वागत को
जब भी दे दस्तक मृत्यु.

रखो अपने मन को मुक्त 
भ्रम और संशय से,
पाओगे जीवन में 
प्रारंभ निर्वाण का 
और मृत्यु में अनुभव 
मुक्ति पुनर्जन्म से.

....कैलाश शर्मा 

19 comments:

  1. शास्वत सत्य .....

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  2. मृत्यु में अनुभव
    मुक्ति पुनर्जन्म से.सच्चाई से परिपूर्ण बेहद सुंदर गहन भाव अभिव्यक्ति।

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  3. बहुत सही लिखा है |

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  4. मैं मरता हूँ कहॉ देह मुझसे यह छूटी जाती है ।
    पर आत्मा है अमर वही फिर-फिर जगती में आती है।

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  5. पर क्या करें होता यही है जीवन से मोह और मृत्यू से डर ।

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  6. निर्लिप्त भाव से जीना कहाँ आसाँ होता है ... मक्ति शायद मर के ही संभव है ...

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  7. जन्म मरण के चक्र से निकलने के लिए ही तो निर्वाण की जरुरत है ....

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  8. बहुत उम्दा ........... सुंदर सन्देश

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  9. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-03-2014 को चर्चा मंच पर दिया गया है
    आभार

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  10. बहुत गहराई है इस रचना में…मृत्यु एक शास्वत सत्य है...जन्म और मृत्यु के बीच की यात्रा जीवन है...

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  11. इतना आसान कहाँ है निर्लिप्त होना । सुन्दर सन्देश

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  12. yahi sach hai ....lekin ishwar ne moh maya bhi to soch kar banaya hoga ...!

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  13. बहुत खूब...............आदरणीय!

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